20 जवानों की शहादत के बाद भारत और चीन के रिश्ते गलवान घाटी के ऐसे संकरे दर्रे में फंस गए हैं जहां सेभरोसे वाले पांव जमाकरसाथ निकलना अब संभव नहीं। 15 जून की दुखद घटना के 48 घंटों के बाद अब फिर से इतिहास के पन्ने पलटे जा रहे हैं, और देखा-समझा जा रहा है कि क्या वाकई, अपने सामान की तरह चीन 'यूज एंड थ्रो' वालेसस्ते रिश्तों में यकीन रखता है?
कथनी-करनी-कम्युनिस्ट
बाकी दुनिया के लिए चीन हमेशा से एक पहेली बना हुआ है। नेहरू से लेकर नरेंद्र मोदी तक भारत भीअपने बड़े भाई जैसे लगने वाले पड़ोसी देश को समझ नहीं पाया। वजह साफ है क्योंकि,चीन की कम्युनिस्ट सरकार कीकथनी और करनी में बहुत अंतर है, जिसके सबूत उसके नेता बीते 70साल में हर मौके परभारत को धोखा देकर देतेरहे हैं।
ड्रैगन-पानी-आग
मोदी के प्रधानमंत्री बनने से पहले 67 साल में सिर्फ पांच प्रधानमंत्रियों ने चीन का दौरा किया था। इनमें पंडित नेहरू, राजीव गांधी, नरसिम्हा राव,अटल बिहारी वाजपेयीऔर मनमोहन सिंह शामिल हैं।इसी पड़ताल में तलाशी गईं कुछ पुरानीतस्वीरें और उनकी कहानी, जो यही बात दोहराती है कि चीनी ड्रैगन दिखाता तो शांति और मित्रका का ठंडापानी है, लेकिन आखिर मेंउगलता आग ही है।
तस्वीरों की ये कहानी मोदी से नेहरू तक चलेगी, और उसमें सबसे ऊपर वह तस्वीर जिसके लिए खुद मोदी निशाने पर हैं, जो पीएम रहते चीनी राष्ट्रपति से कुल18 मुलाकातों में रिश्ते सुधारने की भरसक कोशिश कर चुके हैं।
साल 2014- झूला तो झूले, पर सिर्फ दिखावे के लिए: मई 2014 में गुजरात के नरेंद्र भाई देश के मोदी हो गए। शपथ समारोह में ही तमाम पड़ोसियों को बुलाकर यह समझाया कि भारत आपके लिए कितना जरूरी है। मौके की नजाकत और बाजार देखचार महीने बाद सितंबर 2014 में चीनी राष्ट्रपति भी दौड़े आए। होमवर्क के माहिरपीएम मोदी ने बहुत संजीदगी से मेजबानी निभाई, जिसका गवाह अहमदाबाद मेंसाबरमती का किनारा बना। जिनपिंग ने गांधी आश्रम में चरखा चलाया और बाद में मोदी के साथ पक्की दोस्ती दिखाते हुए हिंडोले में झूले। 12 समझौते किए और 20 अरब डॉलर निवेश का वादा भी किया और आगे के 5 साल ऐसा बहुत कुछ हुआ भी, लेकिन डोकलाम में इस दोस्ती की परीक्षा हुई और नतीजा गलवान में आया।
साल- 2019 ऐतिहासिक जगह मिले, पर इतिहास नहीं बदला: साबरमती नदी के तटसे शुरू हुए भारत-चीन के रिश्ते 5 साल मेंबंगाल की खाड़ी तक पहुंच गए। मई 2019 में देश की दोबारा बागडोर संभालने के बादपीएम मोदी और शी जिनपिंग की अक्टूबरमें महाबलीपुरम में अनौपचारिक मुलाकात हुई थी। चीन की सत्ता में 7 साल से जमेजिनपिंग की मोदी सेयह तीसरी मुलाकात थी। समुद्र किनारे ऐतिहासिक नगर की पृष्ठभूमि में दोनों नेताओं ने नारियल पानी पिया, बच्चों से मिलेऔर करीब6 घंटे तक बातचीत भीकी। गलवान से 7 महीने पहलेजिनपिंग का ये दौराभारत और चीन के रिश्तों की आखिरी सुखद याद कहा जाएगा।
साल 2015 - टेराकोटा की मूर्तियों में रिश्तों की तलाश: पीएम मोदी अपने पहले कार्यकाल में सबसे पहले भूटान गए थे और फिर नेपाल। चीन से रिश्ते साधने में उन्होंने धीरज और चतुराई दिखाई। चीनी राष्ट्रपति के भारत दौरे के 8 महीने बाद मोदी बतौर पीएम चीन गए। राष्ट्रपति जिनपिंग भी मोदी के मेजबानी मॉडल पर चले और एहसान उतारने मित्र को भव्य स्वागत के साथ होमटॉउन शियान ले गए। हर मौके को तस्वीर बना देने में माहिर हमारे पीएम की चीन के टेराकोटा वॉरियर्स संग्रहालय की ये तस्वीर खूब वायरल हुई। इसमें मोदी चीनी सैनिकों की मूर्तियों को निहार रहे थे, उन्हें छूकर ऐसे देख रहे थे, मानो उनसे बाते करना चाहते हों। इसके बाद उनकी चीनी नेताओं से खूब मुलाकातें हुईं, दोस्ती की नई इबारतें और मूर्तियां लगाने के वादे हुए।
अप्रैल 2018 - रिश्तों के सुर साधते मोदी-जिनपिंग: 27 अप्रैल 2018 की ये तस्वीर पीएम मोदी की चौथी चीन यात्रा की है और जगह है कोरोनावायरस वाले वुहान शहर का हुबेई म्यूजियम। ये यात्रा इसलिए ऐतिहासिक रही कि मोदी के स्वागत में गर्मजोशी दिखाने के लिए जिनपिंग ने पहली बार देश का प्रोटोकॉल तोड़ दिया।मोदी के लिहाज से भी यात्रा ने रिकॉर्ड बनाए क्योंकि हमारे पीएम सबसे ज्यादा चौथी बार चीन का दौरा करने वाले पहले नेता बन गए थे। इस मौके परदौरान मोदी ने चीन के सामने 21वीं सदी के पंचशील की नई व्याख्या पेश की थी।
1953 का पंडित नेहरू का पंचशील सिद्धांत : पंडित नेहरू ने 1953-54 में चीन के साथ रिश्ते सुधारने का जो पंचशील सिद्धांत दिया था उसके मुताबिक: 1. एक दूसरे की अखंडता और संप्रभुता का सम्मान, 2. परस्पर आक्रामकता से बचना , 3. एक दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना, 4. समान और परस्पर लाभकारी संबंध, 5. शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व बनाए रखना। 2018 का मोदी का पंचशील सिद्धांत -"अगर हम समान विजन, मजबूत रिश्ते, साझा संकल्प, बेहतर संवाद और समान सोच के पांच सिद्धांतों वाले पंचशील के इस रास्ते पर चलें तो इससे विश्वशांति, स्थिरता और समृद्धि आयेगी।
जून 2018: तस्वीरों में दोस्ती के रंग- 9 जून को बीजिंग में शंघाई समिट में भाग लेने के लिए पीएम मोदी फिर से चीन पहुंचे। इससे मात्र 42 दिनों में चीन के दो दौरे करने का नया रिकॉर्ड भी बन गया। दुनिया में मोदी-शी के दोस्ती के चर्चे और बढ़ने लगे। चीन को ट्रेड वॉर में घेरने में लगे ट्रम्प भी इस दोस्ती से घबराए। मोदी का ये पांचवा और गलवान से पहले का आखिरी चीन दौरा था, जिसमें उन्होंने अपने मित्र काे थोड़ा नाराज भी कर दिया क्योंकि भारत ने चीन केबेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव(बीआरआई) प्रोजेक्ट को समर्थन देने इससे इनकार कर दिया था। चीन ने इस परियोजना के लिए 80 देशों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों से समझौते किए हैं और पूरे दक्षिण एशिया में अकेला भारत इससे बाहर है। हालांकि इस दौरे में जिनपिंग ने नवंबर 2019 में दूसरी भारत यात्रा का निमंत्रण स्वीकार कर लिया था।
नवंबर 2019 - नए रिश्तों की आखिरी तस्वीर: 13 नवंबर 2019 की ब्राजील की राजधानी की ये तस्वीर इसलिए बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इसी समय चीन में कोरोना दस्तक दे रहा था। मोदीब्राजील में 11वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में भाग लेने गए थे और इस दौरान शी जिनपिंग से अपनी 18वीं मुलाकात भी कर आए। इस मुलाकात के बाद दोनों नेताओं के बीच सिर्फ फोन पर बात हुई है। कोरोना के कारण दुनिया का भारी दबाव झेल रहा चीन इतनी जल्दी भारत के साथ आधी सदी पुराना सीमा विवाद सुलगाने में लग जाएगा, ये शायद ही किसी ने सोचा था।
जनवरी, 2008 - मनमोहन की पहली यात्रा: यूपीए-1 में पीएम डॉ. मनमोहन सिंह ने चीन की अपनी पहली अधिकारिक द्विपक्षीय यात्रा 13 से 15 जनवरी के दौरान की।इस दौरानदोनों देशों ने 21वीं सदी के लिए साझा दृष्टिकोण पर संयुक्त दस्तावेज जारी किया। इसके बाद 26-31 मई, 2010 को भारत कीराष्ट्रपतिप्रतिभा पाटिलने चीन का दौरा किया। 15-17 दिसंबर, 2010 को चीनी प्रधानमंत्री बेन जियाबाओ भी भारत आए। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच छह समझौतों पर हस्ताक्षर हुए। 2015 तक द्विपक्षीय कारोबार को 100 अरब डॉलर का लक्ष्य निर्धारित किया गया। ये तमाम यात्राएं भारत और चीन संबंधों में ज्यादा गर्मी नहीं ला पाईं,क्योंकि उस दौर मेंदोनों ओर से राजनीतिक इच्छाशक्ति कमजोर थी।
1998 से 2005 के बीच का दौर - गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री की पहली चीन यात्रा: मई, 1998 में पहली अटल बिहारी वाजपेयी सरकार द्वारा पोखरण में परमाणु विस्फोट किया गया। भारत को परमाणु ताकत का दर्जा देने वाली यह घटना पड़ोसी को अच्छी नहीं लगी। उसकी तीखी प्रतिक्रिया ने दोनों देशों के बीच संबंधों को करीब झुलसा ही दिया। जून, 1999 में तत्कालीन विदेश मंत्री जसवंत सिंह ने चीन दौरा किया। इस दौरे में दोनों पक्षों ने एक दूसरे को धमकी न देने के वचन को दोहराया। मई-जून, 2010 में तत्कालीन राष्ट्रपति केआर नारायणन की यात्रा से दोनों के बीच उच्च स्तरीय आदान-प्रदान की वापसी हुई। जनवरी, 2002 में चीनी प्रधानमंत्री झू रोंगजी भी भारत आए और फिर से संबंधों को नई हवा मिलने लगी। 2003 में पहली एनडीए सरकार में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की पहली चीन यात्रा के दौरान दोनों के बीच द्विपक्षीय संबंधों को बढ़ाने के एक विजन डॉक्यूमेंट पर हस्ताक्षर किए गए। सीमा विवाद को सुलझाने के लिए विशेष प्रतिनिधियों की नियुक्ति हुई। अप्रैल, 2005 में चीनी प्रधानमंत्री वेन जियाबाओ की यात्रा के दौरान दोनों देशों के संयुक्त घोषणापत्र पर हस्ताक्षर हुए। नवंबर, 2006 में चीनी राष्ट्रपति हू जिंताओ की भारत यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच कई क्षेत्रों में सहमति का संयुक्त घोषणापत्र जारी किया गया।
1991 से 1996 का दौर- राष्ट्र प्रमुखों की आवाजाही शुरू हुई: यह आर्थिक उदारीकरण की आहट का दौर था। दुनिया के बाजार खुल रहे थे और चीन बाजार के हिसाब से अपनी नीतियांबदल रहा था।दिसंबर,1991 में चीन के प्रधानमंत्री ली पेंग ने भारत दौरा किया। इसके बादमई,1992 में तत्कालीन राष्ट्रपति आर वेंकटरमण चीन की राजकीय यात्रा पर गए थे। राष्ट्राध्यक्ष स्तर पर दोनों देशों के बीच यह पहली यात्रा थी। इसके बादतत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने चीन का अपना पहला दौरा किया। उनकी इस यात्रा के दौरान भारत - चीन सीमा क्षेत्र में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर शांति एवं अमन चैन बनाए रखने पर महत्वपूर्ण करार पर हस्ताक्षर किए गए थे। इसमें प्रावधान किया गया था कि दोनों पक्ष सीमा पर यथास्थिति औरएलएसी का सम्मान करेंगे।नवंबर, 1996 में चीनी राष्ट्रपति जियांग जेमिन ने भारत का राजकीय दौरा किया। यह चीन के राष्ट्राध्यक्ष की पहली भारतयात्रा थी।
1976 से 1988 का दौर - भारत ने 1962 के जख्म भुला कर नई शुरुआत की: अक्साई चिन-गलवान घाटी को लेकर लड़े गए 1962 के युद्ध के बाददोनों देशों के बीच खत्म हो चुके राजनयिक संबंध अगस्त, 1976 में बहाल हुए। इसका आगाज तत्कालीन विदेश मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की फरवरी, 1979 के चीन दौरे से हुआ। इस दौरे के बाद 1981 में चीनी विदेश मंत्री ज्जांग हुआ ने भारत की यात्रा की। 19 साल बाद फिर से भारत-चीन करीब आने लगे। भारत में ये आपातकाल की राजनीतिक उथल-पुथल के बाद का इंदिरा युग था। लेकिन, इंदिरा गांधी ने कभी चीन पर वैसा भरोसा नहीं किया जो उनके पिता पंडित नेहरू ने किया था। इंदिरा कभी चीन यात्रा पर नहीं गईं। हालांकि इंदिरा की हत्या के बाद राजीव गांधी ने अपने नाना के पंचशील को आगे बढ़ाने की पहल की।दिसंबर, 1988 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी चीन गए। 1962 युद्ध के 26 साल बाद रिश्तों में आई खटास दूर करने के लिए राजीव बीजिंग पहुंचे थे। इस दौरे से दोनों पक्षों के बीच सभी क्षेत्रों में द्विपक्षीय संबंधों के विस्तार एवं विकास पर सहमति बनी थी। चीन ने राजीव के रूप में भारत में नई लीडरशिप को उभरते देखा और रिश्ते फिर हरे होने लगे।
1953 से 1962 का दौर - पंडित नेहरू से हुई पहले धोखे की शुरुआत: 23अक्टूबर 1954ये ऐतिहासिक तस्वीर पहले प्रधानमंत्री पंडित नेहरू के पहले चीन दौरे की है जिसमें वे चीन से सबसे शक्तिशाली नेता माओत्से के साथ बिना अपनी खास टोपी के टोस्ट करते हुए नजर आ रहे हैं। इस तस्वीर के जाने कितने मतलब निकाले गए हैं और लगभग हर मतलब में उन्हें कमजोर बताया गया है। चीन गणराज्य की स्थापना एक अक्टूबर, 1949 को हुई थी और इसे मान्यता देने वाला भारत पहला गैर कम्युनिस्ट देश था। एक अप्रैल, 1950 में दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंधों स्थापित हो गए थे। जून, 1954 में चीन के प्रधानमंत्री चाऊ एनलाई जहां भारत दौरे पर आए वहीं, इसके बाद नेहरू अक्टूबर 1954में पूरे 8 दिन के लिएचीन गए और दोनों के बीचपंचशीलसमझौते की नींव पड़ी। हालांकि सिर्फ 5 साल में ही पंचशील का दम फूलने लगा क्योंकि चीनी नेता एलएसी न होने का फायदा उठाकरविस्तारवादी नीति पर चल रहे थे। 1959 आते-आते चीन ने नेहरू के हिंदी-चीनी, भाई-भाई के नारे को किनारे करते हुए, करीब 50 हजार वर्गमील जमीन हड़पने की योजना बनाई।तिब्बत,कैलाश मानसराेवर और अक्साई चिन के साथ गलवान घाटी पर कब्जाइसी समय की बात है।इसी पहले और बड़े धोखेका नतीजा था 1962 का युद्ध, जिसके बाद करीब 38 हजार वर्गमील भारतीय जमीन आज भी चीन के कब्जे में है।
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