करीब एक लाख करोड़ की संपत्ति वाला तिरुवनंतपुरम का पद्मनाभस्वामी मंदिर इन दिनों भारी आर्थिक संकट से गुजर रहा है। 25 मार्च से मंदिर लॉकडाउन के चलते बंद है। हर महीने आने वाला 5 से 7 करोड़ के दान का आंकड़ा चंद हजार रुपएमें सिमट गया है। मंदिर का खर्च 1.50 करोड़ रुपए महीना है। ऐसे में मंदिर प्रबंधन अब सरकार और त्रावणकोर राज परिवार से सहायता मांगने पर विचार कर रहा है। स्टॉफ और पुजारियों की सैलेरी का ही खर्च लगभग एक करोड़ रुपए महीना है।
मंदिर को खोलने का फैसला 30 जून के बाद ही होगा। जून के अंतिम सप्ताह में मंदिर प्रशासन समिति की मीटिंग में आर्थिक संकट से उबरने के लिए प्रस्तावों पर चर्चा होगी। मंदिर समिति के सामने इस समय आर्थिक संकट से निपटना ही सबसे बड़ी चुनौती है। मार्च अंत में बंद हुए मंदिर के सामने अर्थ संकट अप्रैल से ही शुरू हो गया था। उस समय मंदिर के दान का आंकड़ा सात लाख तक आ गया था। और इस समय तो दान नहीं के बराबर ही है।
- इंक्रीमेंट की बजाय 20 प्रतिशत सैलेरी में कटौती
अप्रैल में अमूमन सैलेरी में इंक्रीमेंट होता है लेकिन पद्मनाभस्वामी मंदिर के 150 से ज्यादा पुजारियों की तनख्वाह में 20 प्रतिशत की कटौती की गई है। हालांकि मंदिर के प्रशासक वी. रथेसन के मुताबिक वेतन का कुछ हिस्सा रोका गया है। स्थितियां सामान्य होने पर ये हिस्सा जारी कर दिया जाएगा। इससे मंदिर जुलाई तक अपने जरूरी खर्च निकालसकेगा। क्योंकि जुलाई में मंदिर खुलने पर भी श्रद्धालुओं की संख्या सीमित ही रहेगी।
- ट्रस्ट से 5 लाख और सरकारी अनुदान 25 लाख रुपए
मंदिर को अपने ट्रस्ट से 5 लाख रुपए सालाना मिलते हैं, वहीं सरकारी अनुदान में लगभग 25 लाख रुपए मिलते हैं। मंदिर समिति इस राशि को बढ़वाने की मांग पर भी विचार कर रही है। सरकारी अनुदान 25 लाख से बढ़ाकर 2 करोड़ रुपए सालाना करने की मांग की जा रही है।
- राजपरिवार पद्मनाभ का दास
त्रावणकोर के राजपरिवार ने ही 16वीं शताब्दी में इस मंदिर का पुनर्निर्माण कराया था। 17वीं शताब्दी में राजा मार्तंड वर्मा ने खुद को पद्मनाभस्वामी का दास घोषित कर दिया था। तभी से राज परिवार के सदस्यों में पुरुषों के नामों के साथ पद्मनाभ दास और महिलाओं के साथ पद्मनाभ सेविका जोड़ा जाता है। इस कारण मंदिर समिति को उम्मीद है कि राजपरिवार से इस संकट काल में सहायता मिलेगी।
- सोने के एक-एक सिक्के की कीमत ढाई करोड़ से ज्यादा
2011 में मंदिर के तहखानों से मिले खजाने में कई बहुमूल्य रत्न और सोने के सिक्के मिले थे। करीब 800 किलो सोने के सिक्के दूसरी शताब्दी के हैं। पुरातत्व विभाग की एक रिपोर्ट के मुताबिक एक-एक सिक्के की कीमत ढाई करोड़ रुपए से ज्यादा आंकी गई है। इसके अलावा भी कई दुर्लभ कलाकृतियां और रत्न मिले हैं। इनकी कीमत करोड़ों में है।
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