लद्दाख की गलवान घाटी में हुए संघर्ष के पीछे एक कारण चीन की तरफ इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास हो सकता है, जिससे इन इलाकों में गश्ती बढ़ी है। इसी तरह भारत की तरफ हुएविकास से भारतीय सेना की पेट्रोलिंग भी बढ़ी है। असल में लगातार हो रहे संघर्षों का मतलब यह नहीं है कि एक पक्ष कमजोर है या भारत-चीन के बीच द्विपक्षीय संबंध बहुत खराब हैं।
लेकिन ये यह जरूर बताते हैं कि भारतीय सेना लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) की निगरानी बेहतर ढंग से कर सकती है और नतीजतन अब ज्यादा पीएलए (चीनी सेना) गश्ती दल मिल रहे हैं और उनके एलएसी पार करने की कोशिशों पर संघर्ष हो रहे हैं।
देश को इस समय हमारी सेना का पूरा समर्थन करना चाहिए और जमीनी स्थिति को संभालने की जिम्मेदारी पूरी तरह से सैन्य कमांडरों के पेशेवर विवेक पर छोड़ देना चाहिए। भारतीय सेना पूरे साहस के साथ हमारी सीमाओं की रक्षा कर रही है। अफवाहों के आधार पर सैन्य कमांडरों के पेशेवर विवेक पर शंका करने से हमें बचना चाहिए।
यह कहना कि भारतीय सेना चीनी अतिक्रमण का विरोध नहीं कर रही है, जमीनी तथ्यों से गलत साबित हो रहा है। संख्या में कम होने के बावजूद जिस तरह से गलवान घाटी में हमारे जवान क्षेत्रीय अखंडता सुनिश्चित करने के लिए लड़े हैं, वह बताता है कि भारतीय सेना अपना काम अच्छे से कर रही है।
इस समय हमारा ध्यान समान शर्तों पर डिसइंगेजमेंट सुनिश्चित करने पर होना चाहिए। समस्या के समाधान के लिए सेना, कूटनीति और सरकार के स्तर पर प्रयास हो रहे हैं। उम्मीद है कि चीनी सेना उसी जगह वापस चली जाएगी, जहां 20 अप्रैल को थी। फिर भारत-चीन में असरकारी ढंग से समझौते पर दस्तखत करने के प्रयास होने चाहिए, ताकि एलएसी पर आगे ऐसी घटनाएं न हों।
इस बीच कुछ लोगों के मन में शंका है कि जब दोनों तरफ से गोलियां नहीं चलीं तो इतनी मौतें कैसे हुईं? इसे समझने के लिए हमेें एलएसी को लेकर दोनों पक्षों के बीच हुए समझौतों को देखना होगा। समझौते के मुताबिक, कोई भी पक्ष दूसरे पक्ष की तरफ हथियार नहीं तानेगा।
चूंकि गोलियां चलाने का कोई विकल्प नहीं है, इसलिए एक-दूसरे को रोकने के लिए दूसरे तरीके अपनाए गए। उदाहरण के लिए गश्ती दल को घुसपैठ करने से रोकने के लिए शारीरिक बल का इस्तेमाल। पैंगिंग त्सो में 2017 में दोनों पक्षों ने पत्थरबाजी की मदद ली। इस साल मई के पहले हफ्ते में हुई घटनाओं में पत्थरों के साथ लाठी, छड़ी आदि इस्तेमाल हुईं।
ऐसा लगता है कि 15 जून को भी यही हुआ। गलवान घाटी में हुई मौतों केपीछे पत्थर और अन्य आदिम हथियारों के अलावा दो और कारक रहे। पहला, जब घटना हुई तब अंधेरा था। दूसरा, गलवान नदी में पानी का तापमान शून्य से नीचे था। इसलिए कुछ मौतें सैनिकों के नदीं में गिरने से हुई होंगी।
हमें यह समझना चाहिए कि चीनी पक्ष में भी कई मौतें हुई हैं और हमारे सैनिक चीनियों को उनके इलाके में वापस भेजने के लिए बहादुरी से लड़े। इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए इन घटनाओं का विश्लेषण करना चाहिए और अगर जरूरत पड़े तो परिचालन संबंधी प्रक्रियाओं में बदलाव लाना चाहिए।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
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