दुकानदारों-मकान मालिक, कारोबारी-कारीगरों के समीकरण बैठाने के साथ कुरियर व वाट्सएप पर धंधा बचाने की जंग

(भंवर जांगिड़). लॉकडाउन के दो महीने में दिल्ली के दिलवालों की धड़कनें वेंटिलेटर पर आ गई है। ऐसा इसलिए क्योंकि देश भर में रेडिमेड गारमेंट की सप्लाई करने वाला गांधीनगर के जिस बाजार में पैर रखने की जगह नहीं होती थी, वहां की 15 हजार दुकानों में इन दो महीनों में किसी के पैर नहीं पड़े हैंं।

भले ही दुकानें ऑड-ईवन और अनलॉक की गाइडलाइन का पालन कर पिछले 15-20दिनों से खुल रही हैं, लेकिन ग्राहकों की बजाय मकान मालिकों की आमद ही ज्यादा है, जो किराया वसूलने आ रहे हैं। मकान मालिक की रोजी यही किराया है तो दूसरी ओर दुकान में दो महीने से बिक्री जीरो है, किराया चढ़ चुका है और बिजली के बिल भी भरने पड़ रहे हैं।

मौजपुर मेट्रो स्टेशन के पास दो किमी के दायरे में फैले कबीर नगर में सिलाई मशीनों का संगीत सुनाई देता था, वे सभी मशीनें अभी खामोश है।

यूपी-बिहार के कारीगर कोरोना के कारण दिल्ली छोड़ चुके हैं

कबीर नगर के घर-घर में जींस बनाने वाले घरेलू उद्योग हैं, लेकिन इन दिनों लोगों ने सिलाई मशीनें खोल कर रख दी हैं। यूपी-बिहार के सभी कारीगर कोरोना के डर से दिल्ली छोड़ चुके हैं। कब लौटेंगे? सवाल के दो जवाब है। पहला- फेब्रीकेटर सोच रहा है, यूपी-बिहार में नरेगा का काम कोई कारीगर नहीं करेगा, वह जल्द लौटेगा। दूसरा- कारीगर के दिल में बैठा वायरस का डर उसे गांव छोड़ने नहीं दे रहा है। कनॉट प्लेस को दिल्ली का दिल कहते हैं, वहां का पूरा बाजार ही सन्नाटे से सहमा हुआ है। अनलॉक-1 के बावजूद करीब 80 फीसदी दुकानें बंद पड़ी है।

खान मार्केट में रेस्टोरेंट और कैफे बंद

एशिया के सबसे महंगे और वीवीआईपी बाजार कहे जाने वाले खान मार्केट में रेस्टोरेंट और कैफे बंद हो गए हैं। इस मार्केट के अगले चार-पांच महीने तक गुलजार होने की उम्मीद ही नहीं है। यही दिल्ली जहां देश की राजनीति के समीकरण बनते- बिगड़ते हैं, वहां लॉकडाउन में दुकानदारों व मालिक मकान और कारोबारी व कारीगरों के समीकरण बैठाने के साथ कुरियर व वाट्सएप पर धंधा बचाने की जंग लड़ी जा रही है।

चेन बन ही नहीं पा रही गांधीनगर की इसलिए ताले लटका रहे हैं

गांधीनगर रेडिमेट गारमेंट का होलसेल बाजार है। गारमेंट व उससे जुड़ी चीजों की करीब 15000 दुकानें अलग-अलग गलियों में है। अशोक गली- प्रेमगली हो या फिर सुभाष रोड और रामनगर के तंग रास्ते, हम बिना किसी से टकराए आराम से निकलगए। लॉकडाउन से पहले आते तो दो कदम चलने के लिए कंधे कम से कम चार लोगों से रगड़ खाते।

अशोक गली में घुसते ही सामने दिनेश खंडेलवाल और उनके दो कर्मचारी दुकान में रखे पुतलों की तरह बुत बने बैठे थे। दिनेश की 96 वर्गफीट की दुकान है जिसका किराया 1 लाख रुपए महीना है। उसने पंद्रह दिन में 1% भी धंधा नहीं किया। मार्च-अप्रैल का किराया किसी तरह दे दिया, मई-जून का देने का साहस नहीं जुटा पा रहा है। प्रेमगली का मन्नी सरदार भी खाली बैठा था, पर चिंतित नहीं था। क्योंकि उसकी दुकान 35 साल पुरानी है और वह उसका मालिक है। कहता है किराया तो नहीं देना लेकिन लोकल लेबर भी तो नहीं मिल रहे। सोशल डिस्टेंसिंग के कारण लेबर का ऑटो का किराया भारी पड़ रहा है।

अशोक बाजार के प्रधान केके बल्ली कहते हैं कि धंधा वाट्सएप ऑर्डर पर नहीं चल सकता।हर व्यापारी नया ट्रेंड और डिजाइन देखने जरूर आता है, वह अगले दो महीने और नहीं आएगा। फेब्रीकेटर केलेबर जा चुकेहैं इसलिए प्रोडक्शन बंद हो गया। अब तो बटन, धागे व चेन की दुकानें भी नहीं खुल रही। किराएदार व मालिक मकान के विवाद सुलझाने में दिन निकल रहे हैं।

हर किसी की पसंद जींस सिलने वाली मशीनें खामोश
मौजपुर मेट्रो स्टेशन के पास दो किमी के दायरे में फैले कबीर नगर में सिलाई मशीनों का संगीत सुनाई देता था, वे सभी मशीनें अभी खामोश है। मशीनें खोल कर कारखानों में एक साइड पटकी पड़ी है। हजारों की संख्या में ये वे मशीनें है जो हर किसी की पसंद वाली जींस सिला करती थी। लगभग पूरा कारोबार यूपी-बिहार के लेबर के हाथों में था जो अब जा चुकी है। हाईफर जींस के मोहम्मद शादाब बताते हैं 50 मशीनों से रोजाना 1000 जींस बनाते थे। टैंक रोड की दुकान का किराया 1.50 लाख, गोदाम का 40 हजार व फेब्रीकेटिंग यार्ड का 1.25 लाख रुपए है।बिजली का बिल भी माफ नहीं हुआ।

किराएदारी के गणित में नहीं उलझी अदालतें इसलिए टेबल पर हो रहे समझौते
खान मार्केट का एक दुकानदार दिल्ली हाईकोर्ट पहुंचा और बोला वह किराया नहीं दे सकता, माफ किया जाए। कोर्ट ने कोई राहत नहीं दी। देते भी कैसे, किराए की गणित में उलझना बहुत मुश्किल है। जिस दिल्ली में 4 लाख परिवारों का जीवन ही किराए पर चल रहा है, डीडीए, एमसीडी व मेट्रो का खर्चा भी किराया पर चल रहा है। अकेले अक्षरधाम मेट्रो के नीचे बने बैंक्वेट हॉल और शोरूम का किराया ही 1 करोड़ से ज्यादा आता है। लिहाजा कोर्ट ने किराएदार का आग्रह ठुकरा दिया और लीज-एग्रीमेंट की शर्त मानने को कह दिया।

कनॉट प्लेस में जो शोरूम खुले हैं, वे भीतर से तो रोशनी से जगमगा रहे हैं, परंतु उनके बाहर के गलियारे सूने पड़े हैं।

दिल्ली का दिल कनॉट प्लेस सन्नाटे के साये में
यहां के सभी ब्लॉक में लगभग 2500 शोरूम है, उनमें से 80% खुले ही नहीं थे। करीब 200 रेस्टोरेंटपूरी तरह कब खुलेंगे, बता पानामुश्किल है। युनाइटेड कॉफी हाउस जिसका इतिहास 1942 में शुरू होता है, वह इन दिनों टेकआउट व होम डिलिवरी कर रहा है। जो शोरूम खुले हैं, वे भीतर से तो रोशनी से जगमगा रहे हैं, परंतु उनके बाहर के गलियारे सूने पड़े हैं। पार्किंग खाली है, क्योंकि सिर्फ शोरूम संचालकों की गाड़ियां हैं।

वीवीआईपी खान मार्केट: सोशल डिस्टेंसिंग में सभी दुकानों में चहल-पहल
यह दिल्ली का सबसे वीवीआईपी खान मार्केट है और इसे एशिया का सबसे महंगा मार्केट भी माना जाता है।इसेपाकिस्तान से विस्थापित होकर आए लोगों के लिए बनाया गया था। अब देश-विदेश का हर ब्रांड सबसे पहले आता है। इंदिरा गांधी से अटल बिहारी वाजपेयी और डा. मनमोहनसिंह से अमित शाह तक के लोग यहां आते हैं। यहां 156 दुकानों से शुरूआत हुई थी, जिनका किराया 7 से 10 लाख रुपए महीना है।

सबसे महंगी 22.50 लाख रुपए किराए की दुकान यहां रिलायंस की है। साठ फीसदी पुश्तैनी और चालीस फीसदी किराए है। सभी दुकानें खुल चुकी है और सभी में सोशल डिस्टेंसिंग कापालनकरते हुए लोगों की चहल-पहल अच्छी-खासी दिखरही है। हर दुकान के बाहर गोले बने हैं व स्टीकर लगे हैं। थर्मल गन से तापमान चेक करने के बाद दुकान में प्रवेश दे रहे हैं।

खान मार्केट एशिया का सबसे महंगा मार्केट है। लॉकडाउन खुलने के बाद यहां की दुकानें अब खुल रही हैं।

वर्चुअल फेयर से 25500 करोड़ का हैंडीक्राफ्ट निर्यात बचाने की कोशिश
नोएडा के इंडियन एक्स्पो सेंटर एंड मार्ट में हर साल अप्रैल से जुलाई तक चार बड़े फेयर लगते हैं, मगर इस बार कोरोना के कारणलॉकडाउन था। एक्सपोर्ट प्रमोशन फॉर हैंडीक्राफ्ट (ईपीसीएच) से बात की तो कहा वसंतकुंज दिल्ली के दफ्तर में मेला चल रहा है। कॉन्फ्रेंस रूम में ज्वैलरी के वर्चुअल फेयर का लाइव चल रहा था। हैंडीक्राफ्ट का निर्यात करीब 25500 करोड़ है, उसे बचाने के लिए तीनों के वर्चुअल फेयर शुरू किए हैं।
दस हजार के डिस्काउंट पर बुलैट
अनलॉक-1 के बादऑटोमोबाइल के शोरूम खुलने लगे हैं। पड़पड़गंज की इंडस्ट्रीयल गलियों में किसी कारखाने से मशीनों की आवाज नहीं आ रही थी। कारों के शोरूम व सर्विस सेंटर खुले थे। शोरूम में कुछ लोग आ रहे थे, मगर सर्विस सेंटर में गाड़ियों की भीड़ थी। हमें बुलेट का एक शोरूम मिला जहां काफी लोग थे। मालूम हुआ एनफील्ड के इतिहास में पहली बार डिस्काउंट दिया जा रहा है। लॉकडाउन में 10 हजार का था, अब 1 से 15 जून तक 6 हजार, फिर 30 जून तक घट कर 3 हजार का रह जाएगा। विपुल ने बताया कि उसने पिछले 15 दिन में 50 बुलेट बेची है। हर माह की औसत बिक्री 180 से 200 के बीच होती है।

दिल्ली का लाल किला आम लोगों के लिए अगले कुछ महीने और खुलने वाला नहीं है। पूरा मैदान खाली पड़ा है।

लालकिले पर 15 अगस्त की तैयारियां शुरू
दिल्ली का लाल किला आम लोगों के लिए अगले कुछ महीने और खुलने वाला नहीं है। पूरा मैदान खाली पड़ा है। इस बीच एमओडी नेलाल किले पर 15 अगस्त की तैयारियां शुरू कर दी है। सीपीडब्ल्यूडी रिपेयरिंग व सफाई का काम करवा रहा है। दर्शकों के बैठने वाली जगह की घास काटी जारही है और ट्रैक्टर से जमीन समतल की जा रही है। हर साल की तरह ही कार्यक्रम होगा, परंतु लोगों की भागीदारी कितनी होगी यह एमओडी तय कर रहा है।



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दिल्ली के प्रमुख बाजारों में लॉकडाउन का बड़ा असर हुआ है। जहां कभी भीड़ इतनी होती थी कि पैर रखने की भी जगह नहीं होती थी, वह आज वीरान सा दिखता है।


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