प्रमोटर्स के नियंत्रण पर लगाम लगानेवाले सेबी के नए कांसेप्ट का शुरू हुआ विरोध, कंपनियों के मालिकों ने कहा यह सही नहीं है

कंपनियों पर प्रमोटर्स के नियंत्रण के वर्तमान कांसेप्ट को बदलने की सेबी की योजना पर विरोध शुरू हो गया है। कई कंपनियों के प्रमोटर्स ने इसका विरोध शुरू कर दिया है। सेबी के इस प्रस्ताव का उद्देश्य कंपनियों को प्रोफेशनल तरीके से चलाने और कम हिस्सेदारी रखने वाले प्रमोटर्स के अत्यधिक हस्तक्षेप पर लगाम लगाना है।

प्रमोटर्स ने इस पर आगे नहीं बढ़ने का फीडबैक दिया है

कई कंपनियों ने सेबी के इस कदम के साथ आगे न बढ़ने जैसा फीडबैक दिया है। यह प्रस्ताव सितंबर में जारी किया गया था और बाजार नियामक सेबी ने इस मामले को अपनी प्राथमिक बाजार सलाहकार समिति (पीएमएसी) को भेज दिया था। सेबी ने इंडस्ट्री के कुछ लोगों से उनके विचार मांगे हैं। सेबी चेयरमैन अजय त्यागी ने अक्टूबर में एक कार्यक्रम कहा था कि वैश्विक और भारतीय बाजारों की बदलती हकीकत को ध्यान में रखते हुए हम आज के समय में प्रमोटर के कांसेप्ट की समीक्षा कर रहे हैं।

कमेटी में शामिल लोगों ने बताया कि हालांकि सेबी गवर्नेंस नियमों को दुरुस्त करने के लिए उत्सुक है, लेकिन वह एकतरफा फैसला भी नहीं लेना चाहता है।

सेबी का उद्देश्य कंपनियों में प्रमोटर्स के हस्तक्षेप को कम करना है

पीएमएसी के एक सदस्य ने कहा कि सेबी का उद्देश्य उन कंपनियों में प्रमोटर के हस्तक्षेप को कम करना है जहां उनके पास 50 प्रतिशत से कम हिस्सा है। सदस्य ने कहा कि हमने ऐसे मामले देखे हैं जहां प्रमोटर्स ने बोर्ड द्वारा प्रस्तावित बिजनेस के भी कई सुधारों को ठप कर दिया है। कुछ प्रमोटर्स के ऐसे रवैये से सार्वजनिक शेयरधारकों का पैसा खतरे में है।

प्रमोटर्स पर कम देनदारी के लिए हो रही है कोशिश

सेबी के मौजूदा नियमों के अनुसार, प्रमोटर्स को कंपनी के वास्तविक कंट्रोल में माना जाता है। कंट्रोल का मतलब दिन-प्रतिदिन के मामलों में दखल देना भी है। वे कंपनी में होने वाली किसी भी धोखाधड़ी या गलत प्रबंधन के लिए व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार भी हैं। शेयरधारकों को कंट्रोल करने के कांसेप्ट से यह भी होगा कि इससे अगर कुछ गलत हो जाता है तो प्रमोटर्स पर देनदारी भी कम होगी।

इससे पहले भी सेबी के कई नियमों का हो चुका है विरोध

यह पिछले एक साल में कम से कम चौथा मौका है जहां कॉर्पोरेट्स ने सेबी के नए नियमों को पीछे धकेलने की कोशिश की है। इस साल की शुरुआत में कई प्रमोटर संचालित कंपनियों ने चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर के पदों को अलग करने की जरूरत के खिलाफ आवाज उठाई थी। यह कानून 1 अप्रैल, 2020 से लागू होने वाला था। हालांकि उद्योग जगत के कड़े विरोध के कारण सेबी को इसे अप्रैल 2022 तक टालने पर मजबूर होना पड़ा।

इसी तरह पिछले साल रॉयल्टी भुगतान के नियम के विरोध पर उसे भी सेबी को वापस लेना पड़ा था।



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कुछ प्रमोटर्स के गलत रवैये से शेयरधारकों का पैसा खतरे में है। सेबी इसीलिए नया कांसेप्ट ला रहा है


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