संतान के सपने के लिए जीने वाले जुनूनी पिता की जीती-जागती मिसाल देखना हो तो आप सी. सत्यनारायण से मिलिए। 2006 में 17 साल की बेटी वोल्गा एक्सीडेंट में चल बसी, फिर 2010 में 24 साल का बेटा लेनिन। दोनों ही तीरंदाजी के उम्दा खिलाड़ी थे। जिस हादसे में बेटे की मौत हुई, उसी में सत्यनारायण की आंखों की रोशनी चली गई।
सबने सोचा, तीरंदाजी में ओलिंपिक गोल्ड का सपना लिए जीने वाले पिता की कहानी यहीं खत्म हुई, लेकिन 50 की उम्र में सरोगेसी से पिता बने। बेटी 8 साल की है और उसे तीरंदाजी सिखा रहे हैं। आर्चरी एकेडमी उनके बेटे लेनिन का सपना थी, जिसे पूरा कर रहे हैं। फादर्स डे पर उनकी कहानी पढ़िए, उन्हीं की जुबानी...
‘अंडर-9 में नेशनल चैंपियन बेटी ओलिंपिक गोल्ड लाएगी’
‘आप इसे पागलपन कहें या जुनून, 24 साल के बेटे और 17 साल की बेटी को खोने के बाद भी मैं हारा नहीं। मेरे दोनों ही बच्चे तीरंदाजी के चैंपियन थे, लेकिन पहले बेटी वोल्गा और फिर बेटा लेनिन साथ छोड़ गया। दो अक्टूबर 2010 की वह रात मैं नहीं भूल सकता, जब कॉमनवेल्थ गेम्स में देश का पहला सिल्वर मेडल लेकर अपने घर विजयवाड़ा लौट रहे थे।
गाड़ी लेनिन ड्राइव कर रहाथाऔर 20 किमी पहले ऑटो को बचाते हुए लेनिन संतुलन खो बैठाऔर गाड़ी उछलते हुए एक डिवाइडर से जा टकराई। हादसे में लेनिन हमें छोड़ गया। लेनिन के जाने के साथ मेरी आंखों की रोशनी भी जाती रही। लेनिन के जाने के दसवें दिन मैंने उसकी पत्नी की दूसरी शादी की घोषणा कर दी थी और एकेडमी लौट आया।
हम पति-पत्नी डिप्रेशन में थे। एक दिन पत्नी ने सरोगेसी के बारे में पढ़ा और मां बनने की इच्छा जाहिर की। मैं चौंक गया। मैंने कहा, 50 की उम्र में बच्चा पैदा करना पागलपन है। लोग क्या कहेंगे। इस पर उसने कहा, हमें किसी की परवाह नहीं है और हम एकेडमी चलाने के लेनिन के सपने को नहीं छोड़ेंगे। हमने पहले पोलैंड में फिर विजयवाड़ा में डॉक्टरी सलाह ली और सरोगेसी प्रोसेस शुरू किया। शिवानी जब गर्भ में थी, तब उसे तीरंदाजी के ऑडियो सुनाते थे।
2 अप्रैल 2012 को घर में शिवानी की किलकारी गूंजी। हम खुश थे। शिवानी जब 10 महीने की थी, तभी उसने तीर पकड़ लिया था। उसकी मां ने तब कहा था- मेरी वोल्गा और लेनिन दोनों वापस आ गए। पिता बनने की वजह यह थी कि हम दोनों लेनिन के सपने को मरने नहीं देना चाहते थे। इसलिए तय किया कि सरोगेसी से मां-बाप बनेंगे और चैंपियन बनाएंगे ताकि देश के लिए तीरंदाजी में ओलिंपिक का गोल्ड ला सके।
मैं आज शिवानी को तैयार कर रहा हूं। आठ साल की उम्र में भी उसने लेनिन जितना नाम कमा लिया है। देख नहीं सकता, इसलिए उसके लिए दो कोच रखे हैं। ध्यान रखता हूं कि उसे सही ट्रेनिंग मिले। मैं बचपन से ही उसे हाथों की मजबूती के लिए एक्सरसाइज करवा रहा हूं। कह सकता हूं कि शिवानी की आंख भी अर्जुन की तरह निशाने पर है। 8 साल की शिवानी अंडर-9 में नेशनल चैंपियन है। वो ओलिंपिक में गोल्ड लाकर मेरा सपना अवश्य पूरा करेगी।’
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