एलएसी पर चीन से विवाद के 44 दिन; दोनों देशों में 4 मीटिंग हुईं; विदेश मंत्री जयशंकर ने 75 से ज्यादा ट्वीट किए, पर एक बार भी चीन का नाम नहीं लिया, प्रधानमंत्री भी चुप

चीन के नामचीन जनरल सुन जू ने 'द आर्ट ऑफ वॉर' नाम की किताब में लिखा है कि, 'जंग की सबसे बेहतरीन कला है कि बिना लड़े हुए ही दुश्मन को पस्त कर दो।' चीनी सेना इस वक्त अपने जनरल की बातों जैसी ही हरकत कर रही है।

भारतीय सेना ने मंगलवार दोपहर को एलएसी पर अपने तीन सैनिकों के शहीद होने का बयान जारी किया। रात होते-होते 20 भारतीय सैनिकों के शहीद होने की खबर आ गई। भारतीय सेना के पहले बयान के घंटेभर के अंदर ही चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजियान ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर डाली।

झाओ ने सीमा पर हुई दोनों देशों के सैनिकों के बीच झड़प की सारी जिम्मेदारी भारत पर डाल दी। यही नहीं, इसे भारत की भड़काऊ हरकत भी करार दे दिया। धमकी भी दी- बोले कि, 'ना तो भारत को बॉर्डर लाइन पार करनी चाहिए और ना ही कोई ऐसा एकतरफा कदम उठाना चाहिए, जिससे हालात बिगड़ते हों।'

रात सवा आठ बजे,तकरीबन 8 घंटे बाद भारतीय विदेश मंत्रालय का बयान आया, कहा गया कि- हम भारत की संप्रभुता और अखंडता को लेकर प्रतिबद्ध हैं। सीमा विवाद को आपसी बातचीत के जरिए सुलझाया जा सकता है।

भारत-चीन सीमा पर इस साल पहली बार पांच मई को लद्दाख स्थिति पैंगोंग झील के पास दोनों देशों की सेनाओं के बीच विवाद की खबर आई थी। उसके बाद 9 मई को सिक्किम में भी दोनों देशों की सेनाओं के बीच झड़पे हुईं। फिर, 6 जून को सैन्य कमांडर स्तर की बातचीत शुरू हुई। तब से दोनों देशों के बीच कुल चार बैठकें हो चुकी हैं। नतीजे में हमारे 20 सैनिकों को शहादत मिली।

इस पूरे विवाद को 44 दिन हो गए हैं, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक बार भी कुछ नहीं बोलेहैं। यही नहीं, विदेश मंत्री एस जयशंकर भी अब तक इस पूरे मुद्दे पर खामोश हैं। यहां तक उन्होंने पांच मई से अब तक ट्वीटर पर 75 से ज्यादा ट्वीट भी लिखे हैं, लेकिन एक बार भी चीन का जिक्र तक नहीं किया है। न ही टकराव पर सिंगल लाइन कुछ बोले हैं।

विदेश मामलों के जानकार हर्ष वी पंत कहते हैं कि यह पहली बार नहीं है। जब हमारे विदेश मंत्री कुछ न बोले हों। डोकलाम के बाद भी तत्कालीन विदेश सुषमा स्वाराज ने सीधे संसद में बयान दिया था।

भारत-चीनसीमा विवाद के बारे में वह सब-कुछ जो आप जानना चाहते हैं-

  • अगले दो दिन अहम, भारत को डिप्लोमेटिक स्टैंड बताना होगा-

विदेशी मामलों के जानकार हर्ष वी पंत कहते हैं कि चीन ने पूरी जिम्मेदारी हमारे ऊपर ही डाल दिया है। जिस तरह से चीन का रिएक्शन है, उससे नहीं लगता है किचीन डी-एस्केलेशन चाह रहा है। इससेदोनों देशों के बीच टेंपरेचर बढ़ रहा है।

अगले दो दिन सबसे अहम हैं, अब देखना है कि भारत का डिप्लोमेटिक स्टैंड क्या होता है? भारत किस तरह से कदम उठाता है? क्या भारत डी-एस्केलेशन के लिए कोई कदम उठाएगा? विदेश मंत्रालय को बताना चाहिए कि जब फायरिंग नहीं हुई, तो सैनिक कैसे शहीद हुए? उन्हें पत्थरों से मारा गया या फिरडंडे से मारा गया?

पंत कहते हैं कि चीन बार-बार सारी जिम्मेदारी भारत पर डाल रहा है, लेकिन भारतडेमोक्रेटिक देश है। इसलिएहमारे पॉलिसी मेकर्स को अपनी जनता को जवाब देना होगा कि हमने क्या किया? क्योंकि भारतीय जनता में चीन की हरकतों से बेहद नाराजगी है।

  • चीन के सैनिक भीमरे हैं, तो विदेश मंत्रालय को बताना चाहिए-

पंत कहते हैं कि यदि चीन के भी सैनिक मारे गएहैं, तो उसके बारे में हमारे विदेश मंत्रालय को आधिकारिक तौर पर कुछ बताना चाहिए। हालांकि, नहीं बताने के पीछे एक वजह यह भी हो सकतीहै कि बयानबाजी से माहौल खराब होता है। अब देखना है कि भारत इसे कैसे हैंडल करता है?लेकिन, चीन ने तो बयानबाजी करके माहौल खराब दिया है। हालांकि, चीन सरकार यह बात स्वीकार नहीं करेगी कि उसके सैनिक मारे गए हैं या घायल हुए हैं।

भारत-चीन सीमाविवाद के पीछे की तीन बड़ी वजह-

1- जम्मू-कश्मीर सेअनुच्छेद370 कोहटाना-

पंत कहते हैं कि सबसे बड़ी वजह, जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाना है। इससे चीन पूरी तरह से तिलमिलाया हुआ है, इसीलिए वह इस मुद्दे को यूएन सिक्युरिटी काउंसिल में भी ले गया था। चीन को लगता है कि यदि भारत का कंट्रोल कश्मीर और लद्दाख में बढ़ेगा तो उसके कंस्ट्रक्शनप्रोजेक्ट में दिक्कतें आएंगी।

खासकर, पाकिस्तान के साथ बन रहे स्पेशल इकोनॉमिक कॉरिडोर पर, जो पीओके से होकर गुजर रहा है। इसीलिए, चीन कश्मीर और लद्दाख में भारत के इंफ्रास्ट्रक्चर बिल्डिंग पर आपत्ति जता रहा है। भारत ने जब से दौलत बेग ओल्डी में सड़क बनाई है, तब से चीन ज्यादा ही खफा है।

2- कोरोना को लेकरदुनिया का प्रेशर-

चीन के ऊपर कोरोनावायरस को लेकर दुनिया का बहुत प्रेशर है। इसलिए उसे लगता है कि भारत ऐसा देश है, जिसे वह रेडलाइन दिखा सकता है। उसे धमका सकता है, दुनिया का अटेंशन कोरोना से हटाकर सीमा विवाद पर डाल सकता है। वह भारत को अगाह भी करना चाहता है कि आपकी लिमिट है। भारत के पास कोई मुद्ददा भी नहीं है, जिसके जरिए वह चीन पर दबाव डाल सके। अभी सारे प्रेशर प्वाइंट चीन के पास हैं।

3- भारत की विदेश और आर्थिक नीतियां-

भारत की जो विदेश नीति रही है, उससे भी चीन को परेशानी हुई है। चाहे वह WTO का मामला हो, चाहे कोरोनावायरस को लेकर हो रही जांच की बात हो। इन मुद्दों पर भारत ने चीन के विरोध में अपनी सहमति दी है। या फिर चाहे, भारत का पश्चिम देशों के साथ जाना हो।

भारत ने पिछले महीनों में कड़े आर्थिक कदम भी उठाए हैं। भारत ने चीन के साथ एफडीआई को कम कर दिया, पोर्टफोलियो इन्वेस्टमेंट में रिस्ट्रक्शन ले आया है। चीन की कंपनियों पर सरकार कड़ी नजर रख रही है। प्रधानमंत्री मोदीआत्मनिर्भरता की बात कर रहे हैं। इन बातों से भी चीन को लग रहा है कि भारत उससे आर्थिक निर्भरता को कम करना चाह रहा है।

भारत के पास अब आगे क्या रास्ते हैं?

  • ट्राइलेटरल मीटिंग रद्द करें-

22 जून को भारत-रूस-चीन के विदेश मंत्रियों की ट्राइलेटरल मीटिंग होनी है। ऐसे में अब यह देखना है कि क्या विदेश मंत्री एस जयशंकर उसमें हिस्सा लेंगे। फिलहाल की स्थिति के लिहाज से उन्हें इस मीटिंग में हिस्सा नहीं लेना चाहिए। यदि वह हिस्सा नहीं लेंगे, तो ही चीन को मैसेज जाएगा कि भारत झुकने को तैयार नहीं है। हालांकि इससे यह भी हो सकता है कि दोनों देशों के बीच तनाव और बढ़ जाए।

  • डी-एस्केलेट करें-

भारत सरकार चीन के साथ कूटनीतिक स्तर की नए सिरे से बातचीत शुरू कर सकता है। ताकि सीमा पर टेंशन कम हो। इससे भारत को ही फायदा होगा। क्योंकि जब आप किसी से कमजोर होते हैं तो यह सोचते हो कि ताकतवर आपको और ज्यादा परेशान न करे। यही वजह है कि 44 दिन बाद भी विदेश मंत्री की ओर से कोई बयान तक नहीं आया है। भारत अभी बहुतफूंक-फूंककर कदम उठा रहा है।

  • नेगोशिएशंस करें-

दोनों देशों के बीच मिलिट्री लेवल पर निगोशिएशंस चल रहे हैं, लेकिन अब डिप्लोमेटिक लेवल पर भी बातचीत की जरूरत है। ताकि विवाद को हल करने के लिए नए रास्ते निकाले जा सकें। विदेश मंत्रियों के बीच बातचीत हो। इसी काम के लिए पीएम मोदी और जिनपिंग के बीच वुहान इनफॉर्मल समिट में स्ट्रैटजिक गाइडेंस पर सहमति बनी थी। इसके तहत दोनों देशों केटॉप लेवल अपने अधिकारियों को आपसी सहमति के लिए गाइड करेंगे।

चीन बॉर्डर विवाद के जरिए भारत को हमेशा मैसेज देना चाहता है

हर्ष वी पंत कहते हैं कि चीन हमेशा से सीमा विवाद का इस्तेमाल भारत पर दबाव बनाने के लिए करता रहा है। 2013 में उनके राष्ट्रपति भारत आने वाले थे, तब चीन ने सीमा पर तनाव पैदा किया था। 2014 में जब उसके प्रधानमंत्री भारत आने वाले थे, तब भी ऐसा ही किया था। शी-जिनपिंग आने के बाद डोकलाम किया। चीन को जब भारत को कोई कड़ा मैसेज देना होता है तो वह बॉर्डर पर देता है।

हमें यह समझना होगा कि पाकिस्तान से बड़ादुश्मन है चीन

पंत कहते हैं कि भारत में जो लोग बार-बार पाकिस्तान का नाम लेते रहते हैं, उन्हें यह सोचना चाहिए कि चीन भारत का पाकिस्तान से भीबड़ा दुश्मन है और हमेशा से ही रहा है। हमें अपनी सोच को बदलना होगा। पाकिस्तान के पीछे भी चीन की सोच है।

  • चीन ने 27 साल पुराना शांति समझौता भी तोड़ दिया-

1993 में भारत और चीन के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर शांति और स्थिरिता को बनाए रखने के लिए समझौता हुआ था। इस फॉर्मलसमझौते पर भारत के तत्कालीन विदेश राज्य मंत्री आएल भाटिया और चीन उप विदेश मंत्री तांग जिसुयान ने हस्ताक्षर किया था। इसमें 5 प्रिंसिपल्स शामिल किए गए थे।

चीन को समझौतों कीपरवाह नहीं होतीहै

पंत कहते हैं कि चीन को भारत के साथ किसी एग्रीमेंट की परवाह नहीं है। नहीं तो वह सिक्किम एग्रीमेंट को भी मानता, जिसे उसने बाद में तोड़ दिया।उसे समझौतों का कोईफर्क नहीं पड़ता। 1993 के शांति समझौते बस फंडामेंटल राइट्स बनकर रह गए हैं।



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