विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने बताया है कि गलवान घाटी में शहीद होने वाले जवान निहत्थे नहीं थे। उनके पास हथियार थे। विदेश मंत्री ने 1996 और 2005 के समझौते का हवाला दिया और कहा कि टकराव के दौरान जवान इनहथियारों का इस्तेमाल नहीं कर सकते थे।एक ओरभारत समझौते का पालन कर रहा है, लेकिन चीन को इसकी कोई फिक्र नहीं।
पूरे मामले मेंचीन ने 1993, 1996 और 2013 के समझौतों कासाफ तौर पर उल्लंघन किया है। पूरा मामला समझने के लिए भारत और चीन में एलएसी को लेकर अब तक हुए समझौतों के बारे में जानना जरूरीहै। मालूम हो किभारत और चीन में एलएसी पर शांति बनाए रखने के लिए 27 सालमें 5 समझौते हुए।
1993 का समझौता
चीन के साथ 90 के दशक में रिश्तों की शुरुआत1988 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के चीन दौरे से हुई। 1993 के बाद सेदोनों देशों के बीच कई द्विपक्षीय समझौते और प्रोटोकॉल पर बात शुरू हुई। 1993 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसमिम्हा राव चीन दौर पर गए थे और इसी दौरान उन्होंने चीनी प्रधानमंत्री ली पेंग के साथ एलएसी पर शांति रखने के लिए समझौते पर साइन किए।
- 1993 के समझौते में साफ कहा गया है कि यदि दोनों पक्षों के सैनिक एलएसी को पार करते हैं तो दूसरी ओर से आगाह किए जाने के बाद वह तुरंत अपने क्षेत्र में चले जाएंगे। हालांकि,चीन ने गलवान और पैंगांग लेक में ठीक इसका उलट किया और अपने सैनिक तैनात कर दिए।
- समझौते में कहा गया कि अगर तनाव की स्थिति बढ़ती है तो दोनों पक्ष एलएसी पर जाकर हालात का जायजा लेंगे और बीच का रास्ता निकालेंगे। लेकिन, चीन बातचीत के बावजूद अपनी जिद पर अड़ा रहा और भारतीय जवानों पर धोखे से हमला भी किया।
तीन साल बाद 1996 में समझौते को बढ़ाया गया
1993 के समझौते को तीन साल बाद बढ़ाया गया। 1996 में भारत दौरे पर आए चीनी राष्ट्रपति जियांग जेमिन और तब के भारतीय प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा ने नए समझौते पर साइन किए।
- अगर किसी मतभेद की वजह से दोनों तरफ के सैनिक आमने-सामने आते हैं तो वह संयम रखेंगे। विवाद को रोकने के लिए जरूरी कदम उठाएंगे। हालांकि, चीन ने विवाद वाली जगहों पर पहले दिन से अपना संयम खोया। कई वीडियो में चीनी सैनिक अक्रामक रवैया दिखाते नजर आए हैं।
- एलएसी पर मिलिट्री एक्सरसाइज करते हुए यह तय करना होगा किबुलेट या मिसाइल गलती से दूसरी तरफ न गिरे, इसमें 1500 से ज्यादा जवान नहीं होंगे। साथ ही इसके जरिए दूसरे को धमकी देने की कोशिश नहींहोगी।लेकिन, चीन ने हाल ही में एलएसी के पास मिलिट्री एक्सरसाइज की और चीनी मीडिया ने भारत को धमकी देते हुए इसे बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया।
- दोनों पक्ष तनाव रोकने के लिए डिप्लोमैटिक और दूसरे चैनलों से हल निकालेंगे।
- एलएसी के पास दो किलोमीटर के एरिया में कोई फायर नहीं होगा, कोई पक्ष आग नहीं लगाएगा, विस्फोट नहीं करेगा और न ही खतरनाक रसायनों का उपयोग करेगा।
- समझौते के तहत एलएसी पर दोनों पक्ष न तो सेना का इस्तेमाल करेंगे और न ही इसकी धमकी देंगे।
2005, 2012 और 2013में फिरसमझौतेहुए
2003 में भारत के तब के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने सीमा विवाद को लेकर स्पेशल रिप्रजेंटेटिव स्तर का मैकेनिजम तैयार किया। इसके बाद मनमोहन सिंह के कार्यकाल में 2005, 2012 और 2013 में चीन के साथ सीमा विवाद को लेकर बातचीत बढ़ाने पर तीन समझौते किए थे। उस दौरान विदेश मंत्री एस. जयशंकर चीन में भारत के राजदूत हुआ करते थे।
- भारत और चीन दोनों पक्ष इस बात पर सहमत हुए कि एलएसी के जिन इलाकों में अभी सीमा को लेकर दोनों ओर सहमति नहीं बन पाई है। वहां पेट्रोलिंग नहीं होगी। इसके बावजूद चीनलगातार विवादित जगहों पर अपना कब्जा जमाने के लिए आक्रामक रवैया अपना रहा है।
- समझौते के मुताबिक, दोनों देश बॉर्डर पर जो स्थिति है, उसी में रहेंगे। साथ ही एलएसी पर सेनाओं के बीच विश्वास बनाने के लए प्रोटोकॉल बनाए गए थे।
- दोनों पक्षों में सीमा विवाद से बचने के लिए एक वर्किंग मैकेनिज्मबनाने पर सहमति बनी। इसमें भारत की ओर से विदेश मंत्रालय के संयुक्त सचिव और चीन की ओर से विदेश मंत्रालय के डायरेक्टर जनरल लेवल के अधिकारी अध्यक्ष रहेंगे।
पीएम बनने के बाद मोदी 5 बार चीन गए
नरेंद्र मोदी 2014 में पीएम बनने के बाद 5 बार चीन दौरे पर जा चुके हैं। मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से 18 बार मुलाकात हो चुकी है। इनमें वन-टू-वन मीटिंग के साथ ही दूसरे देशों में दोनों नेताओं में हुई मुलाकातें भी शामिल हैं।
पीएम मोदी ने चीन के साथ रिश्तों में गर्मजोशी लाने की कोशिश की, इसी के तहत 2018 के अप्रैल में वुहान से इनफॉर्मलसमिट की शुरुआत हुई। 2019 में इसी समिट के तहत दोनों नेताओं की मुलाकात तमिलनाडु के महाबलिपुरम में हुई।
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